बिग ब्रेकिंग: हल्द्वानी :ए पी एस स्कूल measurement द्वारा “ड्रेस दुकान’ से की गई ‘टाई अप’ ‘पोल खोलती’ यह सनसनीखेज रिपोर्ट! सत्र शुरू नहीं हुआ बच्चों के dress के उतरने लगे कलर?( पार्ट 2 )
ब्यूरो चीफ अजय अनेजा
हल्द्वानी-स्कूल मेजरमेंट की पोल खुलती यह सनसनीखेज रिपोर्ट उन्होंने सभी अभिभावकों को व्हाट्सएप कर स्वीकार कर लिया है कि बच्चों के ड्रेस के कलर उतर रहे हैं और दोबारा निशुल्क बदल ले फोटोकपी ऊपर दी गई है’
एक कहावत कहावत याद आ रही है ‘ऊंची दुकान फीके पकवान’ ए पी एस स्कूल पर सही बैठ रहा है। ध्यान देने की बात यह है कि आखिर डीपीएस से एपीएस नाम क्यों हुआ? मेजरमेंट इस मामले में चुप्पी साधा हुआ है; जबकि डीपीएस के नाम से उन्होंने करोड़ों रुपया कमाया; और बच्चों को एडमिशन किए आखिर ऐसा क्या हुआ कि रातों-रात इसका नाम बदल कर Aps कर दिया गया ।इसका खुलासा हम अगले सीरियल में करेंगे अभी ताजा मामला हैरतअंगेज करने वाला सामने आया है। गौरतलब है कि स्कूल मैनेजमेंट ने नगर की एक दुकान से टाईअप स्कूल के ड्रेस के लिए किया था गौरतलब है कि उस दुकान के संदर्भ में विगत दिनों हमने सनसनीखेज खुलासा किया था बिना बिल के एक पर्ची में मनमाने रेट पर सामन बेच रहा था और आश्चर्यचकित बात की थी जो रेट ड्रेस के स्टीकर ऊपर लिखा हुआ था उसको भी हटाकर अपने मनमानी रेट पर बेच रहा था; भारी मनमाने दाम लेने के बावजूद भी बच्चों के ड्रेस के कलर हटने लगे जबकि अभी सत्र भी चालू हुए कुछ ही दिन हुआ था । कुछ दिन पहले अभी बातों ने इतने महंगा स्कूल के ड्रेस खरीदे थे जबकि यदि अन्य जगह एड्रेस मिलते तो इससे आधे रेट में इससे कई उच्च क्वालिटी में मिल सकते थे जब अभिभावकों ने इस मामले को जोर-शोर से उठाया तो स्कूल के मैनेजमेंट कुंभकरण नींद से जागा उन्होंने अभिभावकों को एक व्हाट्सएप करके अपने कर्तव्य से इतिश्री कर ली ऊपर दिए गए व्हाट्सएप में स्कूल में स्वीकार किया है स्कूल के बच्चों का ड्रेस कलर हट गया है वह निशुल्क बदलने के लिए जा सकते हैं। अगर इस तरह घटिया ड्रेस था तो स्कूल में मेजरमेंट ने आखिरी दुकान से टाई अप क्यों की। महंगी ड्रेस लेने के बावजूद भी अल्प समय में ड्रेस के कलर क्यों छूटे इसकी जिम्मेदार कौन है। अभिभावकों का कहना था कि अपनी नौकरी छोड़ कर यही काम करते रहें। भागते रहे इतना महंगे ड्रेस के बाद भी कलर छूटना कहीं ना कहीं दाल में काला नजर आता है आश्चर्यचकित है कुछ ही समय में ड्रेस के कलर ऐसे हो गए जैसे पुरानी ड्रेस हो? अभिभावकों का कहना था कि और मेजरमेंट ने मात्र वही दुकान टाई अप कर रखा है जहां स्कूल के ड्रेस मिलते हैं अन्य जगह नहीं? अभिभावकों का कहना था कि अगर अन्य जगह यह बच्चों के स्कूल का ड्रेस मिलते तो काफी कम रेट में इससे अच्छी क्वालिटी मिल सकती थी। बरहाल स्कूल मेजरमेंट ने स्वयं ही स्वीकार कर लिया है एड्रेस घटिया थी? जो अभिभावकों का समय वह आना-जाना खर्च होगा इसके नुकसान की जिम्मेदार की भरपाई कौन करेगा? क्या व्हाट्सएप भेज कर अपने कर्तव्य से इतिश्री हो जाएंगे? गंभीर सवाल है जिसका जवाब मेजरमेंट को देना ही होगा? अभिभावकों का कहना था; दाल में काला नहीं पूरी दाल ही काली है? हम खुशी से नहीं मजबूरी में पढ़ा रहे हैं क्योंकि एडमिशन ले चुके हैं? शेष अगले अंक में….
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