हर वर्ष दो बार मनाया जाता है हनुमान जन्मोत्सव: जरूर पढ़ें क्यों
अजय अनेजा।
लालकुआ-बजरंगबली शिव के अवतार माने जाते हैं। वह चिरंजीवी हैं, अर्थात देह से परे उनकी मृत्यु नहीं हो सकती। हनुमानजी कर्तव्यनिष्ठ, भक्त व संकटमोचक हैं। मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्री राम व मां जानकी के वे इतने प्रिय व विश्वास पात्र हैं कि श्री राम दरबार में सिर्फ उन्हें ही जगह दी गई है।
आप श्री राम दरबार की कहीं भी मंदिर व चित्र को देखें तो मां सीता के साथ श्रीराम चारों भइयों के अलावा गदाधारी ही स्थान बना पाए। यह है उनकी स्वामीभक्ति व विश्वसनीयता।इन दो तिथियों में हनुमान जन्मदिव समान्यता है कि बजरंगबली का जन्मदिवस चैत्र मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है।
इसके अलावा कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को भी हनुमान जयंती मनाई जाती है। इस साल हनुमान जयंती 16 अप्रैल 2022 दिन शनिवार को पड़ रही है।दो बार जन्मोत्सव का कारण आम बाेल चाल की भाषा में तो हनुमान जी की जयंती दो बार मनाते हैं। पर इसे ध्यान से देखें तो एक बार जन्मोत्सव व दूसरी बार विजय दिवस के रूप में मनाई जाती है। दरअसल, बाल्मीकि रामायण के अनुसार बजरंगी का जन्मदिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुदर्शी दिन मंगलवार को हुआ था।जन्म के समय स्वाति नक्षत्र था। तो इस प्रकार से यह उनका असली जन्मोत्सव का दिन हुआ। अब बात करते हैं कि चैत्र को क्या हुआ था।सूर्य को निगलने से दूसरा जन्मदिन जैसा कि हम जानते हैं कि हनुमान जी को अष्ट सिद्धियां व नव निधियां मिली हुई थीं। यह यौगिक सिद्धियां उनकी तपस्या के फलस्वरूप मिली थीं। इनमें से एक है कि वह बहुत ही असीम बलशाली थे, साथ ही वह हवा में उड़ भी सकते थे। पौराणिक मान्यता है कि एक बार भूख लगने पर अपनी इन्हीं विलक्षण शक्तियों के चलते भगवान सूर्य को फल समझकर निगल लिया। ठीक इसी समय राहु भी सूर्य को ग्रास बनाने आया था। पर हनुमानजी के निगलने पर राहु ने देवराज इंद्र से जाकर इस घटना की शिकायत की।देवताओं ने दिया जीवनदान इस पर इंद्रदेव ने हनुमान जी को दंडित करने के लिए वज्र का प्रहार किया, जो कि हनुमानजी की दाढ़ी पर जा लगा। वह बेहोश हो गए। पवन देव में अपने पुत्र को संकट में देख क्रोध में आ गए और पूरे ब्रह्मांड की प्राणवायु को रोक दिया। इससे सब जगह हाहाकार मच गया।यह देख लोगाें ने ब्रह्मा जी से हस्तक्षेप करने को कहा। इस पर सभी देव ब्रह्मा जी के साथ पवनदेव के पास गए और हनुमान जी को जीवन दान दिया। यह दिन था चैत्र मास की पूर्णिमा। इसलिए हर साल बजरंगबली को नया जीवन मिलने के कारण से जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाने लगा। ऐसे पड़ा नाम हनुमान हनु संस्कृति में दाढ़ी को कहते हैं। हनुमान का शाब्दिक अर्थ हुआ बिगड़ा हुआ मुख। इंद्रदेव के वज्र के प्रहार से दाढ़ी के तिरछी होने के कारण उस दिन से ही इनका नाम हनुमान पड़ा।
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