उत्तराखंड राजस्व पुलिस के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने लगाई मोहर, ये है पूरा मामला
उत्तराखंड में राजस्व पुलिस व्यवस्था छह माह के भीतर समाप्त करने से संबंधित 2018 के नैनीताल हाई कोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट मुहर लग गई है। सर्वोच्च अदालत ने राज्य सरकार की हाईकोर्ट के आदेश के विरुद्ध दायर दो विशेष अनुमति याचिकाओं को निस्तारित कर दिया है।
राज्य सरकार की ओर से शपथपत्र दाखिल कर बताया गया है कि राज्य में चरणबद्ध तरीके से राजस्व पुलिस व्यवस्था खत्म करने की शुरुआत कर दी गई है। सरकार के इस हलफनामे के बाद सुप्रीम कोर्ट ने एसएलपी को अंतिम रूप से निस्तारण कर दिया है।
2018 में नैनीताल हाईकोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजीव शर्मा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने गढ़वाल के सुंदर लाल की आपराधिक अपील तथा 2010 में गढ़वाल के ही सुनील सिंह रावत की ओर से इस संबंध में दाखिल पत्र जनहित याचिका का संज्ञान लेते हुए राज्य में राजस्व पुलिस व्यवस्था छह माह में समाप्त करने का अहम आदेश पारित किया था।
कोर्ट ने कहा था कि राज्य के पर्वतीय इलाकों में पुलिस थाने खोले जाएं। महिला थानों की उचित व्यवस्था हो। पुलिस को सर्वश्रेष्ठ प्रशिक्षण दिया जाए। कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि पहाड़ के लोगों को भी अपराधों पर त्वरित कार्रवाई तथा अपराधों की उच्च कोटि की विवेचना का अधिकार है। इस आदेश के विरुद्ध राज्य सरकार ने अलग अलग दो एसएलपी दाखिल की।
11 नोटिस के बाद भी नहीं मिला जवाब
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सरकार की अपील पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता सुनील रावत को नोटिस भेजा लेकिन 11 नोटिस के बाद भी जवाब दाखिल नहीं किया। हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता सुंदर लाल की सजा कन्फर्म हो गई तो वह भी जवाब देने से हट गए।
2021 में हल्द्वानी के आरटीआई एक्टिविस्ट गुरुविंदर चड्डा की ओर से सुप्रीम कोर्ट में हस्तक्षेप याचिका दाखिल की। जिसमें कहा गया कि मूल याचिकाकर्ता के जवाब दाखिल नहीं करने से अवमानना की कार्रवाई नहीं हो पा रही है। कुछ समय बाद गुरुविंदर की मृत्यु हो गई तो अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली की ओर से मूल रूप से रामगढ़ व हाल हल्द्वानी निवासी अमित खोलिया की ओर से जनवरी 2022 में सुप्रीम कोर्ट में प्रार्थना पत्र दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने खोलिया से यह साबित करने को कहा कि वह पटवारी व्यवस्था से प्रभावित हैं। इसके बाद खोलिया की ओर से गांव से संबंधित दस्तावेज प्रस्तुत किये गए। सुनवाई के दौरान बताया गया कि राजस्व पुलिस व्यवस्था में पटवारियों के पास राजस्व एकत्र करने के साथ अपराध नियंत्रण की जिम्मेदारी है। ब्रिटिश काल की इस व्यवस्था में पटवारी अपराध की सही विवेचना नहीं कर रहे और अधिकांश आपराधिक मामलों में अभियुक्त अदालत से बरी हो रहे हैं।
अंकिता कांड के बाद दाखिल की सरकार ने दो अर्जी
गढ़वाल मंडल में रिसॉर्ट की रिसेप्शनिस्ट अंकिता भंडारी हत्याकांड के बाद इस मामले में सरकार की ओर से 15 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में दो अर्जी दाखिल की गई, जबकि इससे पहले याचिकाकर्ता के अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली की ओर से शपथपत्र दाखिल किया गया।
जिसमें राज्य सरकार की कैबिनेट के राजस्व व्यवस्था चरणबद्ध रूप से समाप्त करने से संबंधित निर्णय की कॉपी के साथ ही मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की ओर से इस संबंध में किये गए ट्वीट की कॉपी सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई।
विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूरी भूषण का मुख्यमंत्री को राजस्व पुलिस व्यवस्था खत्म करने से संबंधित पत्र की प्रतिलिपि भी पेश की गई।17 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने न्यायमूर्ति ने एसएलपी को निस्तारित करते हुए हाईकोर्ट के आदेश पर मुहर लगा दी।
राजस्व व्यवस्था समाप्त करने को सरकार ने बढ़ाए कदम
एसएन बाबुलकर, महाधिवक्ता उत्तराखंड सरकार नैनीताल हाई कोर्ट ने कहा किराज्य सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में राजस्व व्यवस्था समाप्त करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में शपथपत्र दाखिल किया गया। शपथपत्र में बताया गया है कि सरकार ने चरणबद्ध रूप से पहाड़ से राजस्व पुलिस व्यवस्था समाप्त करने को कदम बढ़ा दिये हैं। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने एसएलपी निस्तारित कर दी।
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