50 साल सोती रही सरकार, 1976 में बता दिया था डूब रहा जोशीमठ- जानिए क्यों धंस रही है जमीन?

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उत्तराखंड में पवित्र बद्रीनाथ धाम और हेमकुंड साहिब पहुंचने के अंतिम पड़ाव जोशीमठ में रहने वाले लोग दहशत में हैं.

यहां घरों में दरारें आ रही हैं. गेटवे ऑफ हिमालय कहे जाने वाले इस शहर में अब धरती फाड़कर जगह-जगह से पानी निकलने लगा है. सहमे लोग अपना घर छोड़कर इधर-उधर शिफ्ट हो रहे हैं. फिलहाल आपदा प्रबंधन विभाग ने यहां होटल में यात्रियों के रुकने पर रोक लगा दी है और जल निकासी का प्लान और सीवर सिस्टम का काम पूरा करने की तैयारी की है. हालांकि जोशीमठ के लोग इस आपदा की वजह सरकार की लापरवाही को ही मानते हैं वह कहते हैं कि जब 1976 में मिश्रा समिति ने अपनी रिपोर्ट में ये साफ कर दिया था कि जोशीमठ धीरे-धीरे डूब रहा है तो सरकार अब तक सो क्यों रही थी.

50 साल से धंस रहा जोशीमठ

उत्तराखंड का जोशीमठ तब से धंस रहा है जब ये यूपी का हिस्सा हुआ करता था. उस समय गढ़वाल के आयुक्त रहे एमसी मिश्रा की अध्यक्षता में एक 18 सदस्यीय समिति गठित की गई थी. इसे ही मिश्रा समिति नाम दिया गया था, जिसने यह इस बात की पुष्टि की थी कि जोशीमठ धीरे-धीरे धंस रहा है. समिति ने भूस्खलन और भू धसाव वाले क्षेत्रों को ठीक कराकर वहां पौधे लगाने की सलाह दी थी. इस समिति में सेना, आईटीपी समेत बीकेटीसी और स्थानीय जनप्रतिनिध शामिल थे. 1976 में तीन मई को इस संबंध में बैठक भी हुई थी, जिसमें दीर्घकालिक उपाय करने की बात कही गई थी.

नहीं चेती सरकार

जोशीमठ के सैंकड़ो मकान दरक चुके हैं. ऐसा माना जाता है कि भूस्खलन के मामले में यह क्षेत्र ज्यादा संवेदनशील है. हालांकि कुछ लोग कहते हैं कि जोशीमठ की पहाड़ी के नीचे सुरंग से निकाली जा रही एनटीपीसी की निर्माणाधीन विष्णुगाड जल विद्युत परियोजना इसकी जिम्मेदार हैं. इसके अलावा हेलांग विष्णुप्रयाग बाईपास की खोदाई को भी समस्या का कारण माना जा रहा है. हालांकि अध्ययन में यह सामने आया है कि ड्रेनेज सिस्टम न होने की वजह से ज्यादा समस्या हो रही है.

इसके अलावा यहां पर्यटकों लगातार बढ़ रही संख्या और अनियोजित विकास भी समस्या बना है. पर्यटकों की सुविधाओं के लिए यहां तेजी से व्यावसायिक निर्माण हो रहे हैं. यहां कई ऐसे होटल हैं, जो 5 से 7 मंजिला तक बनाए गए हैं. खास बात ये है कि पांच साल पहले चेतावनी मिलने के बावजूद सरकार ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया. जिसका नतीजा यहां रह रहे लोगों को भुगतना पड़ रहा है.

जोशीमठ में घरों में पड़ी दरार.

फरवरी 2021 में आई बारिश ने बिगाड़े हालात

जोशमठ धंसना शुरू तो कई साल पहले हो चुका है, लेकिन 2020 के बाद से समस्या ज्यादा बढ़ गई है. फरवरी 2021 में बारिश के बाद आई बाढ़ से सैकड़ों मकानों में दरार आ गई. 2022 सितंबर में उत्तराखंड के राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की ओर से विशेषज्ञों की टीम ने सर्वे किया.

खराब सीवरेज, वर्षा जल और घरेलू अपशिष्ट जल के जमीन में रिसने से मिट्टी में उच्च छिद्र-दबाव की स्थिति पैदाहोने की बात कही गई इसके अलावा अलकनंदा के बाएं किनारे में कटाव को जोशीमठ शहर पर हुए प्रतिकूल प्रभाव का कारण माना जा रहा है. वैज्ञानिकों ने कहा कि जोशीमठ शहर में ड्रेनेज सिस्टम नहीं है. यह शहर ग्लेशियर के रोमैटेरियल पर है. ग्लेशियर या सीवेज के पानी का जमीन में जाकर मिट्टी को हटाना, जिससे चट्टानों का हिलना, ड्रेनेज सिस्टम नहीं होने से जोशीमठ का धंसाव बढ़ा है.

गेटवे ऑफ हिमालय है जोशीमठ

जोशीमठ को गेटवे ऑफ हिमालय भी कहा जाता है. यह शहर ऋषिकेश-बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग (NH 7) पर स्थित है. हेमकुंड साहिब, ऑली, फूलों की घाटी आदि स्थानों पर जाने के लिए यात्रियों को यहीं से होकर गुजरना पड़ता है. यह शहर विष्णु प्रयाग के दक्षिण में है जो अलकनंदा और धौली गंगा गा संगम स्थल माना जाता है. भारत-चीन सीमा पर अग्रिम चौकियों की वजह से भी यह शहर सामरिक महत्व रखता है.

जमीन से आ रहा पानी

जोशीमठ की दरारों से आ रहा पानी सीधे जमीन से आ रहा है. जोशीमठ के तहसीलदार रवि शाह ने एक न्यूज वेबसाइट से बात करते हुए इसकी पुष्टि की है. उन्होंने बताया कि मारवाड़ी में स्थत जेपी कॉलोनी में जगह-जगह से पानी निकल रहा है. यह पानी सीधे जमीन से आ रहा है, सीवर लाइन या अन्य किसी पाइपलाइन का लीकेज नहीं है. हालांकि उत्तराखंड के आपदा प्रबंधन विभाग के सचिव रंजीत सिन्हा के मुताबिक टेक्नीकल टीम ने भू धसांव का कारण जोशीमठ में पानी की निकासी न होना माना है.

नगर पालिका अध्यक्ष जोशीमठ शैलेंद्र पवार का कहना है कि जोशीमठ लगातार धंस रहा है. पिछले एक साल से लगातार लोगों के घरों में दरारें आ रही हैं. जमीन धंस रही है और लोग अब आंदोलन करने के लिए मजबूर हैं, क्योंकि सरकार कुछ भी नहीं कर रही है. जोशीमठ के कई गांव इसकी जद में आ गए हैं इसलिए प्रदर्शन करना लोगों की मजबूरी है.

स्रोत इंटरनेट मीडिया

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