भारत और चीन के सैनिकों में झड़प के बाद सीमा पर बढ़ा तनाव, जानिए वे समझौते जिसने गोलियों पर लगा रखा है बैन

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भारत और चीन में एक बार फिर तनाव बढ़ गया है जिसका प्रमुख कारण है अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में दोनों ओर के सैनिकों के बीच झड़प। भारतीय सेना ने सोमवार को बताया कि 9 दिसंबर को तवांग सेक्टर में यांगत्से के पास भारत और चीन के सैनिकों में झड़प हुई थी। इस झड़प में दोनों ओर के कुछ सैनिकों को चोटें आई थी। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी मंगलवार को संसद में बताया कि भारतीय सेना ने बहादुरी से पीएलए को हमारे क्षेत्र में अतिक्रमण करने से रोका और उन्हें उनकी पोस्ट पर वापस जाने के लिए मजबूर कर दिया था। तवांग से पहले लद्दाख में गलवान घाटी में भारतीय और चीनी सैनिकों में हिंसक झड़प हुई थी। उस झड़प में भारतीय सेना के 20 जवान शहीद हो गए थे। चीन ने 6 महीने बाद इस झड़प में चार जवानों के मारे जाने की बात कबूल की थी।

हालांकि, एक ऑस्ट्रेलियाई अखबार ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि इस झड़प में चीन के कम से कम 38 सैनिक मारे गए थे। इससे भी पहले 2017 में डोकलाम में 73 दिन तक भारत और चीन की सेनाएं आमने-सामने थीं। हालांकि, उस दौरान कोई हिंसा या झड़प नहीं हुई थी। डोकलाम वैसे तो भूटान में पड़ता है, लेकिन ये एक ट्राई-जंक्शन है, जहां भारत, चीन और भूटान नजदीक हैं। चीन यहां सड़क बना रहा था और भारत ने उसे रोक दिया था।

बता दें भारत और पाकिस्तान की सीमा को लाइन ऑफ कंट्रोल कहा जाता है जबकि, भारत और चीन की सीमा को लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल कहा जाता है। एलएसी पर तनाव हालिया सालों में कुछ ज्यादा ही गहरा गया है। विवाद पहले भी था, लेकिन तब इस तरह की झड़प देखने को कम मिलता था। उसकी एक वजह ये भी है कि भारत से सटी सीमाओं पर चीन इन्फ्रास्ट्रक्चर बढ़ा रहा है। सैनिकों की तैनाती बढ़ा रहा है। भारत और चीन के बीच कुछ ऐसे समझौते हुए है जिन्होंने सीमा पर गोली चलाने पर बैन लगाकर रखा है।

आइए जानते है क्या हैं वे समझौते?

एलएसी पर शांति बनाए रखने के लिए तीन दशक में भारत और चीन के बीच पांच अहम समझौते हुए हैं। पहला समझौता 1993 में हुआ था। उसके बाद 1996 में दूसरा समझौता हुआ था। फिर 2005, 2012 और 2013 में ऐसे समझौते हुए थे। 1962 की जंग के बाद भारत और चीन के रिश्तों में खटास आ गई थी। 1988 में तब के प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने चीन का दौरा किया था। इस दौरे ने रिश्तों को बेहतर करने में अहम रोल अदा किया था। 1993 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने चीन का दौरा किया था। उस समय ली पेंग चीन के प्रधानमंत्री थे। उसी दौरे में ये समझौता हुआ था। इस समझौते में तय हुआ था कि कोई भी देश एक-दूसरे के खिलाफ बल या सेना का इस्तेमाल नहीं करेगा।

साथ ही ये भी तय हुआ कि अगर किसी देश का जवान गलती से एलएसी पार कर जाता है तो दूसरा देश उनको बताएगा और जवान फौरन अपनी ओर लौट आएगा। इसी समझौते में ये भी कहा गया कि अगर तनाव बढ़ता है तो दोनों देश एलएसी पर जाकर हालत का जायजा लेंगे और बातचीत से हल निकालेंगे। इसके अलावा सैन्य अभ्यास से पहले जानकारी देने की बात भी इस समझौते में थी। इस समझौते पर भारत की ओर से तब के विदेश राज्य मंत्री आरएल भाटिया और चीन की ओर से उप-विदेश मंत्री तांग जियाशुआन ने दस्तखत किए थे।

1996 में हुआ एक और समझौता

1993 के तीन साल बाद 1996 में एक और समझौता हुआ था। तब चीन के राष्ट्रपति जियांग जेमिन भारत आए थे। भारत में उस समय एचडी देवेगौड़ा प्रधानमंत्री थे। इस समझौते पर 29 नवंबर 1996 को दोनों देशों ने दस्तखत किए थे। समझौते में तय हुआ था कि दोनों ही देश एक-दूसरे के खिलाफ न तो किसी तरह की ताकत का इस्तेमाल करेंगे या इस्तेमाल करने की धमकी देंगे। समझौते का पहला अनुच्छेद कहता है कि दोनों में से कोई भी देश एक-दूसरे के खिलाफ सैन्य क्षमता का इस्तेमाल नहीं करेंगे और न ही कोई भी सेना हमला करेगी। साथ ही ऐसा कुछ भी नहीं करेगी जिससे सीमा से सटे इलाकों में शांति और स्थिरता को खतरा हो।

इसका अनुच्छेद 6 सबसे अहम है। ये अनुच्छेद ही है जो सीमा पर गोली चलने से रोकता है। अनुच्छेद 6 कहता है कि एलएसी के दो किलोमीटर के दायरे में कोई भी देश गोलीबारी नहीं करेगा, जैविक हथियार या हानिकारक केमिकल का इस्तेमाल नहीं करेगा, ब्लास्ट ऑपरेशन या बंदूकों और विस्फोटकों से हमला नहीं करेगा। 1993 और 1996 में हुए समझौतों ने ही 2005, 2012 और 2013 के समझौतों की नींव रखी थी। इन समझौतों में तय हुआ कि एलएसी के जिन इलाकों को लेकर सहमति नहीं बनी है, वहां पेट्रोलिंग नहीं होगी और सीमा पर दोनों देशों की जो स्थिति है, वही रहेगी।

तो क्या चीन इन समझौतों को मानता है?

वैसे तो इन समझौतों में लिखी एक-एक बात को मानने के लिए दोनों देश ही बाध्य हैं। लेकिन चीन इन समझौतों की कुछ बातों का उल्लंघन करता रहता है। चीन समझौतों की शर्तों को तोड़कर एलएसी के पास इन्फ्रास्ट्रक्चर बना रहा है। अपनी सेना तैनात कर रहा है। जून 2020 में गलवान घाटी में जब झड़प हुई थी, तब गोली चलने की बात भी सामने आई थी। ये 45 साल में पहला मौका था जब एलएसी पर गोली चली थी।

हालांकि, भारत हमेशा इन समझौतों का पालन करता है। गलवान घाटी में हिंसक झड़प के बाद जब सवाल उठे थे कि जवानों को बिना हथियारों के क्यों भेज दिया गया था? तब विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा था कि ‘सीमा पर तैनात सभी जवान हथियार लेकर चलते हैं।

स्रोत इंटरनेट मीडिया

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